लोगों की राय

भाषा एवं साहित्य >> लोकोक्ति कोश

लोकोक्ति कोश

हरिवंशराय शर्मा

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :239
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 678
आईएसबीएन :81-7028-009-5

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

320 पाठक हैं

सभी विषयों से सम्बन्धित प्रचलित लोकोक्तियाँ,सरल अर्थ सहित श्रेष्ठ लेखकों द्वारा प्रयुक्त....

Lokokti kosh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

लोकोक्तियां किसी समाज के अनुभव तथा उससे उपलब्ध ज्ञान का निचोड़ होती हैं। वे प्राचीनतम पुस्तकों से भी प्राचीन तथा वैविध्यपूर्ण होती हैं। समाज के सभी वर्गों के व्यक्ति उनसे हर समय लाभ उठा सकते हैं। लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा का सौंदर्य और सार्थकता बढ़ जाती है।

अनेक वर्षों के परिश्रम से तैयार किया गया प्रस्तुत संकलन हिन्दी भाषी प्रदेश का समग्र प्रतिनिधित्व तो करता ही है, इसमें संस्कृति और उर्दू तथा फारसी से भी चुन-चुनकर लोकोक्तियां ली गई हैं। साथ में उनके अर्थ दिये गये हैं और श्रेष्ठ लेखकों की कृतियों से उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं। प्रसिद्ध कवि तुलसी, सूर, वृन्द, रहीम और नरोत्तमदास जैसे सुकवियों की जनप्रिय उक्तियां भी संकलन में हैं-जो इसका एक मुख्य आकर्षण है।
इस प्रकार एक ही स्थान पर उपलब्ध यह संचित ज्ञान सभी प्रकार के पाठकों के लिए लाभदायक है।


आमुख

अनेक वर्ष हुए मन में एक प्रबल आकांक्षा जाग्रत हुई कि हिन्दी लोकोक्तियों का एक ऐसा कोश तैयार किया जाए जिसमें उनके प्रामाणिक अर्थ के अतिरिक्त उनके प्रयोग वाक्य लब्धप्रतिष्ठ कवियों, लेखकों या विद्वानों द्वारा लिखे गए हों। परन्तु विषय की अपरिमेयता तथा अपनी ज्ञान-सीमितता का विचार करके शंका उत्पन्न होती थी कि मुझे जैसा एक अल्पज्ञ इस महान् कार्य को कदाचित् न कर पाये। परन्तु भगवान् का नाम लेकर कार्य आरम्भ किया और ‘शनै: पन्था शनै: कन्था’ को ध्यान में रखकर काम में लगा रहा जिसके परिणाम स्वरूप यह ग्रंथ अब समाप्त हुआ है।

लोकोक्ति का अर्थ है लोक या समाज में प्रचलित उक्ति। इसी को कहावत कहते हैं। अंग्रेजी में इसे Proverb ‘प्रावर्ब’ कहते हैं। विभिन्न विद्वानों ने लोकोक्ति की परिभाषा भिन्न-भिन्न शब्दों में की है। बेकन के अनुसार, भाषा के वे तीव्र प्रयोग, जो व्यापार और व्यवहार की गुत्थियों को काटकर तह तक पहुँच जाते हैं, लोकोक्ति कहलाते है। डॉ. जॉनसन कहते हैं कि वे संक्षिप्त वाक्य जिनको लोग प्रायः दोहराया करते हैं, लोकोक्ति कहलाते हैं। इरैस्मस का कथन है कि वे लोकप्रसिद्ध और लोकप्रचलित उक्तियां, जिनकी एक विलक्ष ढंग से रचना हुई हो, कहावत कहलाती हैं।

 ‘ऑक्सफोर्ट कनसाइज़ डिक्शनरी’ में लिखी है कि सामान्य व्यवहार में प्रयुक्त संक्षिप्त और सारपूरण उक्ति को कहावत कहते हैं। चेम्बर्स डिक्शनरी के अनुसार लोकोक्ति वह संक्षिप्त और लोकप्रिय वाक्य है जो एक कल्पित सत्य या नैतिक शिक्षा अभिव्यक्त करता है। ऐग्रीकोला कहते हैं कि कहावतें वे संक्षिप्त वाक्य हैं जिनमें आदि पुरुषों ने सूत्रों की तरह अपनी अनुभूतियों को भर दिया है। सर्वन्टीज के अनुसार कहावतें वे छोटे वाक्य हैं जिनमें लंबे अनुभव का सार हो। फ्लेमिंग की सम्पति में लोकोक्तियों में किसी युग अथवा राष्ट्र का प्रचलित और व्यावहारिक ज्ञान होता है। जब हम उपर्युक्त परिभाषाओं तथा लोकोक्तियों के विन्यास तथा प्रकृति पर विचार करते हैं तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि वे बोलचाल में बहुत आने वाले ऐसे बंधे हुए चमत्कारपूर्ण वाक्य होते हैं जिनमें किसी अनुभव या तथ्य की बातें कही गई हों अथवा कुछ उपदेश या नैतिक शिक्षा दी गई हो, और जिनमें लक्षण या व्यंजना का प्रयोग किया गया हो, जैसे ‘आंख के अन्धे नाम नयनसुख’, यहां के बाबा आदम ही निराले हैं, ‘हंसे तो हंसिए अड़े तो अड़िए’, आदि।

लोकोक्ति को वाक्य और मुहावरे को खंड-वाक्य, वाक्यांश या पद माना जाता है।
लोकोक्ति में उद्देश्य और विधेय रहता है। उनका अर्थ समझने के लिए किसी अन्य साधन की आवश्यकता नहीं होती। यह सच है कि कुछ लोकोक्तियों में कभी- कभी क्रियापद लुप्त होता है, परंतु उसको समझने के लिए किसी प्रकार की विशेष कठिनाई नहीं होती। परंतु मुहावरों में उद्देश्य और विधेय का विधान नहीं होता। इस कारण जब तक उनका प्रयोग वाक्यों में नहीं किया जाता, तब तक उनका सम्यक् अर्थ समझ में नहीं आता।

लोकोक्तियों के रूप सामान्यतः अपरिवर्तनीय होते हैं। यदि उनमें शब्दान्तर कर दिया जाए, तो उनकी प्रकृति विकृत हो जाएगी, और श्रोता अथवा उनके अर्थ को नहीं समझ पायेंगे। उदाहरणार्थ, ‘यह मुंह और मसूर की दाल’ लोकोक्ति है। इसके स्थान पर यदि हम कहें ‘यह मुख और चने की दाल’, तो लोकोक्ति का रूप विकृत हो जाएगा और श्रोता हमारा आशय न समझ सकेगा या हमारी हंसी उड़ाएगा। इसी प्रकार हम ‘राम नाम में आलसी, भोजन में होशियार, का प्रयोग इस प्रकार नहीं कर सकते कि वहाँ अनेक लोग ऐसे आये थे जो ‘भगवान के नाम में आलसी परंतु खाने में चतुर’ थे। इसके विपरीत व्याकरण की दृष्टि से मुहावरों के रूप में परिवर्तन होता रहता है। उदाहरणत: ‘जूते से बात करना’ एक मुहावरा है। इसका प्रयोग हम इस प्रकार से कर सकते हैं: वह अपने नौकरों से जूते से बात करता था या बात करता है या बात करेगा। परन्तु हम यह नहीं कह सकते कि वह अपने नौकरों से पद-त्राण से वार्ता करता था।

लोकोक्तियों तथा मुहावरों दोनों में बहुधा लक्षण तथा व्यंजना का प्रयोग होता है। दोनों में अभिधेयार्थ गौण और लक्ष्यार्थ तथा व्यंग्यार्थ प्रधान होते हैं। मुहावरों के प्रयोग वाक्यों तथा लोकोक्तियों दोनों में चमत्कार, अभिव्यंजन विशिष्टता तथा प्रभाविता होती है। फिर भी लोकोक्तियों का प्रयोग प्रायः किसी बात के समर्थन खंडन अथवा पुष्टिकरण के लिए होता है।
लोकोक्तियों और मुहावरों दोनों में अलंकार होते हैं। लोकोक्तियों में विशेष रूप से ‘लोकोक्ति’ अलंकार होता है। इस प्रकार प्राय: सभी लोकोक्तियां उसके अंतर्गत आ जाती है जैसे ‘इहां कोहड़ बतिया कोउ नाहीं’, ‘एक जो होय तो ज्ञान सिखाइए’, ‘कूप ही में यहां भांग परी है’, ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’, आदि। किंतु मुहावरे किसी एक अलंकार में सीमित नहीं होते। उनमें अनेक अलंकार दृष्टिगोचर होते हैं, जैसे उपमा, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, आदि। किन्तु मुहावरों में अलंकार का पाया जाना अनिवार्य नहीं है।

डिसरेली ने बहुत सच लिखा है कि लोकोक्तियां प्राचीनतम पुस्तकों से भी प्राचीन हैं। जब लेखन कला का श्रीगणेश नहीं हुआ था, तब भी स्त्री-पुरुष अपने तथा अपने पूर्वजों के अनुभवों के आधार पर कहावतों का प्रयोग करते थे अनेक लोकोक्तियाँ किशानों,  कारीगरों तथा ग्रामीण जनता और अन्य अनपढ़ समुदायों के अनुभवों पर आधारित हैं; उदाहरणार्थ : ‘आधे माधे कम्बल कांधे’, या ‘मारे भादों का घाम’ या ‘मारे साझे का काम’ या ‘धोबी का कुत्ता घर का न घाट’ का आदि।
कुछ कहावतें कवियों लेखकों तथा मनीषियों की उक्तियां होती हैं, जो अपनी शब्द योजना के सौष्ठव, अभिव्यंजनपटुता या अर्थ-गुरुता आदि के कारण जनता में प्रचलित हो जाती हैं और लोग अपनी वार्ताओं अथवा लेखन में प्रायः उनकी आवृत्ति किया करते हैं। इस प्रकार अनेक हिन्दी-लोकोक्तियां तुलसी, सूर, वृन्द, रहीम और नरोत्तम दास की उक्तियां हैं जो बहुत जनप्रिय हो गई हैं; उदाहरणार्थ : ‘हमहु कहब अब ठकुर सोहाती, नाहित मौन रहब दिन राती’, ‘हानि-लाभ जीवन-मरन, जस-अपजस विधि हाथ’, ‘सूरदास खल कारी कामरि चढ़ै न दूजोरंग’, ‘सबै सहायक सबल के, कोउ न निबल सहाय’, ‘चंदन विष व्यापै नहीं, लपटे रहत भुजंग’ आदि।

जब कोई भाषा अन्य भाषाओं के संपर्क में आती है तब उनके अनेक मुहावरों और लोकोक्तियों को वह उनके मूल या अनूदित रूप में ग्रहण कर लेती है। संस्कृत हिंदी ही जननी है और उसमें लोकोक्तियों का अपार भंडार है। हिन्दी ने उनमें से हजारों लोकोक्तियों को आत्मसात् कर लिया है, जैसे ‘अजीर्वे भोजनं विषम‘, ‘अनभ्यासे विषं शास्त्रम्’, ‘अति सर्व वर्जयेत‘, ‘उद्योगिन पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी’, ‘परोपकाराय संता विभूतयः’, ‘मौन सम्मति लक्षणम्। कुछ कहावतें फारसी और उर्दू से ग्रहण की गई हैं, जैसे ‘अक्लमन्दों के लिए इशारा काफी है।’ (अक्लमन्दारां इशारा काफी अस्त), एक प्राण गो शरीर, (एक कान दो कालीन) ‘अभी दिल्ली दूर है’ (हनोज़ दिल्ली दूर अस्त।’ ‘बिल्ली को पहले ही दिन मारना चाहिए।’ (गोरबा कुश्तन बरोज़ अव्वल बायद), ‘गए थे रोजा छुड़ाने नमाज गले पड़ी’, आदि।

कुछ लोकोक्तियां अंग्रेजी से ली गई हैं, जैसे ‘आदमी की पेशानी दिल का शीशा है’, ‘कुत्ते भौंकते रहते हैं और कारवां चला जाता है’, ‘खाली दिमाग शैतान का कारखाना होता है’, ‘दीवारों के भी कान होते हैं’, ‘सभी जो चमकता है सोना नहीं होता।’, अनेक लोकोक्तियां कहानियों पर आधारित होती हैं।

हम अपने भावों और विचारों को भाषा में व्यस्त करते हैं। जब हम उन्हें साधारण भाषा में प्रकट करते हैं, तो उनकी अभिव्यक्ति बहुत आकर्षक नहीं होती, परंतु जब हम लोकोक्तियों का प्रयोग करते हैं, तब हमारी भाषा आकर्षक रोचक, प्रभावोत्पादक हृदयग्राहिणी तथा चित्रमय हो जाती है। उसमें प्रवाह आ जाता है। लोकोक्तियों का प्रयोग करके हम थोड़े शब्दों में अप्रेक्षाकृत अधिक भावों तथा विचारों को समाविष्ट कर सकते हैं। दूसरे हम लोकोक्तियों में अभिव्यक्त अपने पूर्वजों के अनुभवों से लाभान्वित हो सकते हैं। दूसरे, हम लोकोक्तियों में अभिव्यक्त अपने पूर्वजों के अनुभवों से लाभान्वित हो सकते हैं। उनमें सामान्य जीवन, नीति तथा धर्म में अनेक उपदेश अन्तनिर्हित होते हैं जिनके अनुसार आचरण करके हम अपने जीवन को सफल तथा सार्थक बना सकते हैं। बहुमूल्य सुझावों द्वारा अनुग्रहीत करने की कृपा करें।

सुजन समाज सकल गुन खानी करउं प्रनाम सप्रेम सुबानी।।

 हरिवंशराय शर्मा



अंडा सिखावे बच्चे को कि चीं-चीं मत कर :

जब कोई छोटा बड़े को उपदेश दे तब
इस लोकोक्ति का प्रयोग होता है।
रमेश ने कहा-पिताजी गर्म कपड़े पहन लीजिए, नहीं तो ठंड लग जाएगी।
उसकी माता ने कहा-बहुत ठीक। वही कहावत हुई कि ‘अंडा सिखावे कर।’

अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई :

जब एक व्यक्ति परिश्रम करता है और दूसरा उससे लाभ उठाता है, तब इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
वह सदा अपने काम में परिश्रम करता रहा, लेकिन जब लाभ का समय आया, तब उसे दूसरा कोई ही झटक ले गया। यह तो वही मसल हुई कि ‘अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई।’

अन्त बुरे का बुरा :

जो लोग बुरे कर्म करते हैं, उनको अन्त में भोगना पड़ता है।
हम तो बच गए, पर भाई, ‘अन्त बुरे का बुरा।’ वे तो अब भी जेल में हैं।

अन्त भले का भला :

जो भले काम करता है, अन्त में उसे सुख मिलता है। उसने बड़ी ईमानदारी से काम किया; कभी कोई चोरी-बेईमानी नहीं की। अब वह सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा है। सच कहा है, ‘अन्त भले का भला।’

अंधा क्या चाहे, दो आंखें :

आवश्यक या अभीष्ट वस्तु अचानक या अनायास मिल जाती है तब ऐसा कहते हैं।
कुंअर ने कहा-बुढ़िया, यहां चली आ। वहां बेटे की धौंस क्यों सहती है ? ‘अन्धा क्या चाहे, दो आंखें।’ बुढ़िया मान गई। (सुदर्शन)

अंधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को ही दे :

अधिकार पाने पर स्वार्थी मनुष्य अपने कुटुम्बियों और इष्ट मित्रों को ही लाभ पहुंचाते हैं।
इस दफ्तर के अधिकांश बाबू लोग इलाहाबाद के हैं जानते नहीं
सुपरिटेंडेंट साहब भी तो वहीं के हैं। ठीक है अंधा बांटे... दे।

अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी:

जहां जो व्यक्ति हों और दोनों ही एक समान मूर्ख दुष्ट या अवगुणी हों वहां ऐसा कहते हैं।
महाराज को दिन-रात शिकार की ही रट लगी रहती है और महामंत्री को शतरंज से फुरसत नहीं मिलती। रियासत बरबाद हुई जा रही है। हमें तो वही कहावत याद आती है ‘कि अन्धा सिपाही जोड़ी।’

अंधी पीसे कुत्ते खायें :

मूर्खों की कमाई व्यर्थ नष्ट होती है।
अंधी पीसे पीसना, कूकर धस-धस खात।
जैसे मूरख जनों का, धन अहमक लै जात। (गिरिधर कविराय)

अंधे के आगे रोवे, अपना दीदा खोवे :

मूर्खों को सदुपदेश देना या उनके लिए शुभ कार्य करना व्यर्थ है।
पूछो, सिगरेट के बगैर चाय की पहली प्याली कहीं पी जाती है, मगर कौन समझाए इस बुड्ढे तोते की ? वही मसल है, ‘अंधे के आगे रोवे, अपने दीदा खोवे।’

 


प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai